" अहंकार " इन्सान का सबसे बड़ा शत्रु है । मूल रूप में ये संस्कृत शब्द अहंकार का अर्थ है : अहं + आकार , अहं यानि स्वयं / आत्मा जब आकार लेती , उसे अहंकार कहते हैं । अहं या आत्मा चेतन है और आकार जड़ है । इन्सान अहं या स्वयं के महत्व को भूलकर आकार को ही अपना मानता है । आकार यानि देह और उससे जुडी हर चीज को मैं / मेरा मान लेता है उसे अहंकार कहते हैं । इस प्रकार वह स्वयं ही अपने नष्ट होने का कारण बनता है । अत: अहं यानि चेतना और आकार यानि जड़ को जो पृथक पृथक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।