@ ध्यान और उसके लाभ --------------------------- जब व्यक्ति आत्मा का ध्यान प्रारंभ करता है , तब उसको अपने सामने कभी कुहरे के सदृश्य रूप दीखता है, कभी धुआँ सा दिखाई देता है , कभी सूर्य के सामान प्रकाश सर्वत्र दीखता है , कभी निश्चल वायु की भांति निराकार रूप अनुभव में आता है, कभी अग्नि के सदृश्य तेज दिखाई देता है, कभी जुगनू के सदृश्य टिमटिमाहट सी प्रतीत होती है , कभी बिजली की सी चकाचौंध , कभी चंद्रमा की भांति शीतल प्रकाश सर्वत्र दिखाई देता है , ये सब योग की उन्नति के लक्षण हैं । [ श्वेताश्वतरोप्निषद : अध्याय -2/11 ] * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * ध्यान करते करते जब पृथ्वी, जल, तेज़, वायु, और आकाश - इन पांच महाभूतों पर अधिकार हो जाता है, तब उस योग ऊर्जा को प्राप्त कर लेने पर , उस व्यक्ति के शरीर में न तो कोई रोग रहता है , न बुढ़ापा आता है और न उसकी मृत्यु ही होती है अर्थात् उसकी इच्छा के बिना उसका शरीर नष्ट नहीं हो सकता है । [ श्वेताश्वतरोपनिषद : अध्याय -2/12 एवम् योगदर्शन : 3/46,47 ]